#लाडली का चक्कर, #सरकार घनचक्कर

29 Apr 24 6

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Description
मोमो की डबल इंजन सरकार का दावा भले ही..
विकास की पटरी पर सरपट दौड़ने का हो..
लेकिन बाबू..हांफता खजाना...दौड़ पर ब्रेक मारने पर अमादा है। 
मोमो..अरे मतलब..मोदी_मोहन सरकार..
तो भैया..रिपोर्ट कहती है कि मोमो के दावों पर ग्रहण लगा सकती हैं..बहनें..
मतलब लाडली बहना योजना..
क्या आप भी..बहुत जल्दी कोई भी मायने निकाल..खींसे निपोर देते हैं। 
  वैसे मोमो..इस योजना को लेकर वैसे ही खुश ना थे..
 ऊपर से भारी भरकम राशि जुगाड़ने का टेंशन भी। 
    बीते चुनावों के दौरान..शिव बाबू सियासी समीकरण पर विपक्ष को मात देने की सोच के साथ..बड़ा खेल खेल गए।
 लाडली बहना योजना..। जिसने एक तरह से चुनावों का माहौल तो बदला..। 
अब इस योजना से कितने वोट हासिल हुए..।इस पर घंटों बैठकर बहस की जा सकती है।
      खैर चुनावो में जीत भाजपा के पाले में नाच गई। 
    यह बात जुदा.. कि शिव बाबू किनारे लग लिए और मोहन भिया ..मोदी के प्यारे हो गए। 
   अब भैया सरकार तो कायम रही लेकिन खर्च..सांसे बढ़ा रहा है। 
मिले आंकड़ों के अनुसार लाडली बहना योजना जारी रखने के लिए सरकार को हर महीने 1576 करोड़ रुपए की  दरकार है।
  यानी की भैया..अप्रैल से जुलाई तक ही 6303 करोड़ रुपए की एडिशनल जरूरत हैं। 
   कुल जमा साल भर के लिए पूरे 18 हजार करोड़ रुपए की मांग है।
    फिलहाल कई बहने अम्मा होकर योजना से बाहर हो चुकी हैं लेकिन  नए साल में उससे ज्यादा लड़कियां योजना में जुड़ेंगे..जिसके चलते साल भर खर्चा बढ़कर 20 हजार करोड़ की सीमा टच कर जाएगा। 
   भाई..वाकई आसान नही है..इस बजट को मैनेज करके अन्य विकास कार्यों को गति दे सकना। 
  लेकिन गति तो कुछ ऐसी ही है..जैसे कि एक तरफ कुआं तो दूसरी ओर खाई..
   योजना को विराम दिया तो महिलाओं का एक बड़ा वोट बैंक खिसक सकता है और यदि जारी रखा तो..हालात भगवान भरोसे।  
खैर..मोमो का ध्यान अभी..लोकसभा चुनावो की ओर हैं । 
तब तक शांति से स्थिति से जूझना ही एक मात्र रास्ता..। 
चुनाव बाद ही साफ होगा कि..योजना का आकार, विकार क्या होता है.