400 साल की परम्परा और
एक मेला
महाराष्ट्र के देवता ..
बुंदेलखंड में धाम
आग के अंगारों से गुजरों तो होती है ..
सभी मन्नत पूरी
दिल की आस लिए जुटते हैं
लाखों श्रद्धालु
भारत..समृद्ध परम्पराओं और मान्यताओं का देश|
जहाँ आस्था के सागर में गोते लगाकर, दिल के हर मनोकामना पूरी हो जाती है|
चलिए..आज दिखाते है.. एक ऐसा ही मेला और वहां होने वाली चमत्कारी परम्परा ..जिसे देखने और पूर्ण करने के लिए देश के कोने कोने से श्रद्धालु यहाँ जमा होते हैं
मप्र के सागर जिले के अंतर्गत आने वाला देवरी ...| यह क्षेत्र से सागर नगर से 65 किलोमीटर दक्षिण में
और नरसिंहपुर से उत्तर में 75 किलोमीटर दूरी पर स्थित है|
इसी स्थान पर उपस्थित है
प्राचीन, भव्य एवं ऐतिहासिक अलौकिक श्री देव खंडेराव जी का मंदिर ..
परम्परानुसार प्रतिवर्ष अगहन शुक्ल में चम्पा छठ से पूर्णिमा तक इस मेला का आयोजन किया जाता है|
इस दौरान श्रद्धालु आते हैं और श्री देव खंडेराव का दर्शन कर ...नंगे पैर दहकते अंगारों से गुज़रते हैं|
मान्यता है कि..ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है.
यहाँ स्थित मंदिर अपने आप में बेहद विशेष हैं
खंडेराव मंदिर का इतिहास और महत्ता के अनुसार ..
प्राचीन समय में मणिचूल पर्वत की प्राकृतिक छठा से मुग्ध होकर ऋषि अपने परिवार के साथ यहाँ आ बसे|
यहाँ के शांत वातावरण में रहकर जप एवं पूजा अर्चना करने में अपना समय बिताते थे|
लेकिन यह शांति ज्यादा समय तक बची न रह सकी| ऋषियों को यूं तपस्या करते देख अचानक दो राक्षस यहाँ आ पहुंचे|
जिनमे एक का नाम था मणि और दूसरे का मल्ल|
यह दोनों अति दुष्ट प्रवत्ति के राक्षस थे|
जिन्हें दूसरों को परेशान करने में अति प्रसन्नता होती|
अपने स्वभाव के अनुसार मणि और मल्ल ने यहाँ रहने वाले साधुओ को भी पीड़ा देना शुरू कर दिया|
उत्पात करके साधना को भंग करना, यज्ञ को अपवित्र करना आम हो चला|
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि ऋषियों के गले में रस्सी बांधकर मौजूद कुओं में डुबाया जाने लगा.
आखिरकार मदद के लिए पीड़ित ऋषियों ने देवराज इंद्र की ओर रुख किया.
लेकिन ऋषियों को यह सुनकर और दुःख हुआ जब इंद्र ने अपनी विवशता ज़ाहिर की
और बताया कि ..इन दोनों पापियों को वो भी मृत्युदंड नहीं दे सकते क्योंकि इन्हें ब्रहमदेव से वरदान प्राप्त है|
इंद्र की असमर्थता भांप..मजबूर हो, ऋषियों ने ब्रम्ह देव का रुख किया.
अंततः श्री देव ने ऋषियों के कल्याण के लिए अवतार लिया|
राजसी वेश धारण कर श्वेत घोड़े पर सवार हो ..दोनों पापी राक्षसों का अंत कर दिया .
मृत्यु पूर्व मल्ल राक्षस ने प्रभु से वरदान माँगा| जिसके अनुसारदेव के नाम के साथ उसका नाम भी जुड़े ताकि वो नाम भी हमेशा अमर रहें|
इसके अतरिक्त एक और कथा है, जो जुडी है...नंगे पैर अंगारों पर चलने को लेकर ..
दरअसल राजा यशवंत राव के एकलौते पुत्र मरणासन्न स्थिति में थे. राजा ने देवखंडेराव जी के आगे मागंते हुए कहा ..
यदि मेरा बेटा स्वस्थ हो जाता है तो है प्रभु ..
मै लम्बे चौड़े नाव की आकृति वाले गड्ढे में एक मन लकड़ी जलाकर ..आपकी विधिवत पूजा करके उस अग्नि पर चलूँगा ..
श्री देव ने राजा की मनोकामना को सुना और पूरा कर दिया| वचनानुसार आखिरकार राजा ने अग्नि पर गुजर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की.
बस तव से क्रम जारी है| मान्यता के अनुसार लाखो श्रद्धालु अपनी मनोकामना के लिए यहाँ आग पर से गुज़रते है
सन 1850 से इस मंदिर में पूजा अर्चना एवं प्रवंधन की जिम्मेदारी नारायण राव वैद्द्य परिवार के पास है.
लोगों के दिल में इस मंदिर और चली अ रही मान्यता को लेकर बहुत भरोसा है.
तभी आस्था के इस मेले में लाखों की मुराद पूरी होती है.