मप्र में लोकसभा चुनाव के सभी चरण सम्पन्न हो चुके हैं और इंतज़ार है तो बस परिणाम का ..
यह बात मतदताओं के लिए फिट बैठती है
लेकिन मप्र के मुखिया और मंत्रियों के लिए तो परिणाम के बाद के परिणाम की चिंता भी खाए जा रही है.
परिणाम यदि आशा के अनुरूप रहे तो भी मतदान कम होने के चलते कई मंत्रियों पर गाज गिर सकती है
और सब कुछ उलट पलट हो गया तो...मोशा जो न करें वो कम है.
भाजपा ने टारगेट 29 हासिल करने के लिए बैठकों में तो ठोस रणनीति तय की थी लेकिन शायद अतिविश्वास और मोदी लहर के चलते ...सब कुछ बिखरा बिखरा सा रहा.
यहाँ तक कि भाजपा ने सभी 29 लोकसभा सीटों के लिए सात क्लस्टर प्रभारी बनाया था ताकि तैयारियों को योजनानुसार पूरा किया जा सके.
लेकिन सभी जिम्मेदार ...घर में बैठे मतदाताओं को बूथ तक पहुँचाने में अधिक सफल नहीं हो पाए. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि सक्रियता भी औपचारिक अधिक दिखी.
इस बार हालिया तौर पर समीकरण पार्टी के पक्ष में थे. भाजपा चाहती थी कि जीत का मार्जिन न सिर्फ बड़ा हो बल्कि उसके पारंपरिक गढ़ में तो ऐतिहासिक सफलता हासिल हो.
प्रह्लाद पटेल,कैलाश विजयवर्गीय,दीप्ति सीएम राजेंद्र शुक्ला,दीत्प्ती सीएम जगदीश देवड़ा सहित कई मत्री और दिग्गज नेता ...पार्टी की आशाओं पर खरे नहीं उतर सके.
आलाकमान की एक टीम ने इन्टरनल तरीके से जानकारी जमा करना शुरू कर दिया है. असक्रिय या फिर हवाबाज मंत्रीयों को बाहर का रास्ता दिखाने का तय भी कर लिया गया है तो नए और उर्जावान चेहरों की कुंडली भी खंगाली जा रही है, ताकि उनका उपयोग मुख्यधारा में लाकर किया जा सके.
तय मानिए जुलाई के पहले सप्ताह तक भाजपा अपना फैसला ले लेगी. यानी कि इस बार स्वतंत्र दिवस पर कई दिग्गज मंत्री, जिम्मेदारी से मुक्त, घर में बैठकर भजन गाते हुए और कई नए चेहरे मंत्री के तौर पर झंडा लहराते हुए दिखे...तो कोई आश्चर्य न कीजियेगा